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बुधवार, 9 मई 2012

चित्रगुप्त रहस्य: संजीव 'सलिल'

चित्रगुप्त रहस्य:
 
संजीव 'सलिल'
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चित्रगुप्त प्रणम्यादौ वात्मानाम सर्व देहिनाम.... 

उन चित्रगुप्त को प्रणाम जो सर्व देहधारियों में आत्मा के रूप में स्थित हैं. 'काया स्थितः सः कायस्थः' अर्थात किसी काया में स्थित होने पर वह (सकल सृष्टि का रचनाकार निराकार परात्पर परमब्रम्ह परमात्मा) कायस्थ कहा जाता है.

उसका चित्र या आकार नहीं होता वह जिस काया (देह) का चयन करता है उसके अनुरुप आकार या चित्र हो जाता है. काया से उस(आत्मा = परमात्मा का अंश) के निकलते ही काया को 'मिट्टी' कहा जाता है. 


काया से परे जाकर (समाधि या देहावसान) ही सभी कायाओं के स्वामी से साक्षात् होता है. वही सकल कायाधारियों का कर्म देवता है. व्यवहार जगत में जो इस रहस्य को जानते और मानते हैं वे कायस्थ कहे जाते हैं. 

दूज पूजन के दिन कायस्थ इसी गूढ़ दर्शन को पूजन के माध्यम से व्यक्त करते हैं कैसे?... आप जानते हैं तो बतायें अन्यथा पूछें...
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com/